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अलाउद्दीन खिलजी की इतिहास प्रसिद्ध चितौड़गढ़ विजय । Historically famous Chittorgarh victory of Alauddin Khilji.

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अलाउद्दीन खिलजी की विजय (1297-1311 ईस्वीं) अलाउद्दीन खिलजी उत्तरी भारत की विजय (1297-1305 ईस्वीं)-- अलाउद्दीन खिलजी की इतिहास प्रसिद्ध चितौड़गढ़ विजय व प्रारंभिक सैनिक सफलताओं से उसका दिमाग फिर गया था। महत्वाकांक्षी तो वह पहले ही था। इन विजयों के उपरांत वह अपने समय का सिकंदर महान बनने का प्रयास करने लगा। उसके मस्तिष्क में एक नवीन धर्म चलाने तक का विचार उत्पन्न हुआ था, परन्तु दिल्ली के कोतवाल काजी अल्ला उल मुल्क ने अपनी नेक सलाह से उसका यह विचार तो समाप्त कर दिया। उसने उसको एक महान विजेता होने की सलाह अवश्य दी। इसके अनंतर अलाउद्दीन ने इस उद्देश्य पूर्ति के लिए सर्वप्रथम उत्तरी भारत के स्वतंत्र प्रदेशों को विजित करने का प्रयास किया। 1299 ईस्वी में सुल्तान की आज्ञा से उलुगखां तथा वजीर नसरत खां ने गुजरात पर आक्रमण किया। वहां का बघेल राजा कर्ण देव परास्त हुआ। वह देवगिरी की ओर भागा और उसकी रूपवती रानी कमला देवी सुल्तान के हाथ लगी। इस विजय के उपरांत मुसलमानों ने खंभात जैसे धनिक बंदरगाह को लूटा। इस लूट में प्राप्त धन में सबसे अमूल्य धन मलिक कापुर था, जो कि आगे चलकर सुल्तान का

अलाउद्दीन खिलजी का जीवन परिचय। Life introduction of Alauddin Khilji.

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अलाउद्दीन खिलजी (1296-1316 ईस्वीं) Alauddin Khalji प्रारंभिक जीवन-- अलाउद्दीन जिसे अली या गारशास्प भी कहा जाता था, जलालुद्दीन के एक भाई शिहाबुद्दीन मसऊद खिलजी का पुत्र था। इसके बाल्यकाल व युवावस्था की बातें विस्मृति के गर्भ में दबी हुई है। डॉक्टर किशोरीलाल का कहना है कि यह आश्चर्य की बात है कि वृतांतकारों ने एक ऐसे राजकुमार के प्रारंभिक जीवन के विषय में लिखने की चिंता नहीं की, जिसका देदीप्यमान जीवन उसे मध्यकालीन भारत के एक व्यक्तित्व के रूप में प्रस्तुत करता है। कोई भी समकालीन इतिहासकार उसकी जन्मतिथि के विषय में नहीं लिखता। उसके रणथंबोर के आक्रमण के आधार पर उसका जन्म 1266-67 ईस्वीं के लगभग माना जाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि उसे अपनी बाल्यावस्था में लिखने पढ़ने की कोई नियमित शिक्षा नहीं मिली। परंतु घुड़सवारी व शस्त्र विद्या का उसे अच्छा ज्ञान था। किशोरीलाल का कहना है कि प्रारंभिक विजय स्पष्ट बताती है कि उसने तलवार चलाने में और अन्य पुरषोचित व्यापारों में अत्यंत श्रेष्ठ प्रशिक्षण प्राप्त किया था। जलालुद्दीन सर्वप्रथम अमीर-ए-तुजुक (उत्सव-अध्यक्ष) नियुक्त किया गया। छज्जू क

भारत में खिलजी वंश का संस्थापक-जलालुद्दीन खिलजी । Founder of Khilji dynasty in India- Jalal-ud-din Khalji

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खिलजी साम्राजयवाद जलालुद्दीन खिलजी खिलजी वंश का मूल-- सन 1290 ईस्वीं की वंशीय क्रांति में जलालुद्दीन गुलाम वंश की समाप्ति में सफल हुआ और उसने भारत में खिलजी वंश की स्थापना की। अब प्रश्न यह है उत्पन्न होता है कि यह खिलजी लोग कौन थे? भारत में वे कहां से आए और कब आए? इन प्रश्नों के उत्तर में इतिहासकार एकमत नहीं है। मध्य युग के इतिहासकार इनके मूल स्थान के विषय में कुछ धारणा रखते हैं, तो आधुनिक इतिहासकार अन्य धारणा रखते हैं। जियाउद्दीन बरनी उस काल का इतिहासकार है। अतः उसका उल्लेख अति विश्वसनीय होना चाहिए। उसने यह तो लिखा है कि खिलजी तुर्कों से भिन्न थे, पर यह बताने का प्रयास नहीं किया कि वह कौन थे? वह लिखता है जब कैकुवाद गंभीर रूप से बीमार पड़ा और उसके अच्छे होने की कोई आस न रही, तो बलबन के अधिकारी एकत्र हुए, और उन्होंने मोइनुद्दीन के एक अल्प आयु पुत्र को सिंहासन आधीन करके रक्षकों की एक समिति द्वारा प्रशासन चलाने का निश्चय किया, जिससे तुर्कों के हाथों से प्रभुसत्ता ना निकल जाए। “वह आगे लिखता है-- चूँकि जलालुद्दीन भिन्न जाति का था, उसे तुर्कों पर कोई विश्वास नहीं था और ना ही तुर

Governance of the Slave Dynasty rulers in India. भारत में गुलाम वंश के शासकों की शासन व्यवस्था ।

भारत में गुलाम वंश की शासन व्यवस्था कुतुबुद्दीन ऐबक (1206 ईस्वी) द्वारा स्थापित कि गई और यह शासन व्यवस्था व्यवस्थित ढंग से गयासुद्दीन बलबन के शासनकाल तक चलती रही। बलबन इस लोक से 1286 ईस्वी में विदा हुआ और उसकी मृत्यु के 4 वर्ष उपरांत (1290 ईस्वी) में ही गुलाम वंश भारत में समाप्त हो गया। 1290 ईस्वी में भारत से गुलाम वंश के शासकों द्वारा प्रतिपादित शासन संस्थाएं भी समाप्त हो गई। बलबन ने अपने राजस्व सिद्धांतों को बड़ी कठोरता से क्रियान्वित किया; परन्तु उसकी शासन व्यवस्था उसके जीवनकाल में ही लड़खड़ाने लग गई थी। गुलाम वंश के शासकों ने अपनी शासन व्यवस्था किसी पूर्व नियोजित योजना के अनुसार लागू नहीं की थी। उनकी शासन व्यवस्था मूलतः उनके धार्मिक सिद्धांत व भारत की तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों से प्रभावित रहती थी। इसका परिणाम यह हुआ कि उनकी शासन व्यवस्था स्थाई न होकर समय अनुकूल परिवर्तनशील बनी रही। फिर भी उनकी शासन व्यवस्था को हम निम्न स्वरूप में देख सकते हैं। राज्य का स्वरूप-- भारत के गुलाम शासकों का शासन तत्कालीन अन्य मुस्लिम शासकों की भांति धार्मिक सिद्धांत पर आधारित था। वे अपना शास

अलबरी कबीले का सरदार गयासुद्दीन बलबन । Alabari clan chieftain Ghiyasuddin Balban. Part-2

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बलबन की शासन व्यवस्था Ghiyasuddin Balban राज्य का संगठन( शासन प्रबंध)-- जब बलबन गद्दी पर बैठा था, उस समय राज्य का संगठन बड़ा ही अव्यवस्थित था। उसके पूर्वजों के शासन में राज्य भय जनता में नहीं था। अतः बलबन ने व्यवस्थित शासन व्यवस्था स्थापित कर राज्य को संगठित करने का प्रयास किया। यह सत्य है कि बलबन ने अपने शासनकाल में कोई नया प्रदेश नहीं जीता। परंतु उसने अपने पूर्वजों से प्राप्त राज्य को शुद्ध बनाए। बलबन का शासन एकतांत्रिक था। शासन की समस्त सत्ता उसके हाथों में केंद्रित थी। वह राजा के पद को अति महत्वपूर्ण समझता था, तथा उसके कार्यों को पवित्र कार्य समझता था। इसीलिए वह प्रशासन के समस्त कार्यों में भाग लेता था। उसके सुल्तान बनने के समय देश की अवस्था विषम थी। परंतु उसकी यह सुदृढ़ शासन व्यवस्था ही थी, जिसके सहारे कि वह भारत में गुलाम राज्य को बनाए रखा। डॉक्टर हबीबुल्लाह लिखता है कि “ बलबन का सबसे महान कार्य ही यह था कि उसने राज्य में सुव्यवस्था कायम की, चाहे प्रशासन में अधिक सुधार न हुआ हो। इस प्रकार से अलाउद्दीन खिलजी के प्रशासन की उसने भूमिका तैयार कर दी थी।“ सेना का संगठन-