नाग पंचमी और गोगा नवमीं
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नाग पंचमी की कथा |
श्रावण बद्दी पंचमी को नाग पंचमी होती है। इस दिन ठंडी रसोई बनाकर खाते हैं। एक पटरी पर रस्सी से 7 गांठ को सांप बनाकर रखा जाता है। सांप की जल, कच्चे दूध, मोई (बाजरे के आटे और घी में चीनी मिलाकर बनाई जाती है।) भिगोए हुए मोठ, बाजरा, रोली, चावल, ठंडी रोटी दक्षिणा के रूप में चढ़ाया जाता है। उसके पश्चात नाग पंचमी की कहानी सुनते हैं। मोठ, बाजरा और रुपए का सीधा या बानो निकालकर सासु के पैर लग कर देते हैं। अपनी बहन बेटियों के लिए भी सीधा या बानो निकाल कर भेजते हैं। इस दिन आपकी बहन बेटियों के पीर में जाकर उन्हें लेकर आना चाहिए।
नाग पंचमी व गोगा नवमीं की कहानी
एक साहूकार था। उसके सात बेटा और सात बहु थी। सातों खेत से कच्ची मिट्टी लेने गई। मिट्टी में से एक सांप निकला। तब सारी देवरानी जेठानी सांप को मारने लगी। तो छोटी बहू ने मना किया। उसने कहा इस सांप को अपने धर्म का भाई बना लेते हैं, और कहा कि “पीहर में बाप और बाम्बी में सांप।” तब सारी जेठानी बोली कि कल इसका खेत से लकड़ियां लाने का नंबर है, सो सांप को उसी तरफ भेज देते हैं। वहां पर सांप निकलेगा और इसको काट खाएगा। दूसरे दिन छोटी बहू खेत से लकड़ियां लाने गई, तो वहां पर सांप बैठा था। सांप ने उसको देख कर फुफकार मारी। तब छोटी बहु बोली भैया राम राम। तो सांप बोला कि तुमने मुझे भाई बोला नहीं तो मैं तुम्हें डस लेता। छोटी बहू बोली की आप तो मेरा धर्म का भाई हो। आप मेरे को कैसे डस सकते हो और कहा कि “जीओ नाग नागोलिया, जिओ बासुकी नाग। जिन मेरो लाड लडाया, नेवर घाली पांव।।” तब सांप उसको नेवर (एक प्रकार का पैर का जेवर) देकर चला गया।
छोटी बहू नेवर पहन के घर आई तब बाकी की जेठानी बोली की इसको तो सांप ने डसा नहीं। थोड़ी देर बाद सांप उसको लेने के लिए आ गया और बोला कि मेरी बहन को भेजो। तब सारी जेठानी बोली अपने तो पीहर होते हुए भी अपना भाई लेने नहीं आया। इसके पीहर नहीं है तो भी इसका धर्म का भाई इसको लिवाने आया है। फिर उसको तैयार करके मेहंदी लगा कर भेज दिया। दोनों रास्ते में चले तो एक जगह उनको खून की नदी बहती मिली। तब छोटी बहू बोली कि मैं कैसे पार करूंगी? तब भाई बोला कि मेरी पूछ पकड़ कर। जैसे ही वह चलने लगे वैसे ही खून की नदी दूध की हो गई। फिर घर (सांप की बाम्बी) आते ही पीहर में सब उसके लाड प्यार करने लगे। काफी दिन रहते हो गए। एक दिन सांप की मां बोली “मैं तो बाहर जा रही हूं, तुम अपने भाईयों (सांप के छोटे छोटे बच्चे) को दूध ठंडा करके दे देना। उसने अपने भाइयों को गरम गरम दूध पिला दिया। तो किसी का तो फन जल गया किसी की पूछ जल गई। फिर एक दिन वह अपनी पड़ोसन से लड़ाई कर रही थी। तब किसी बात पर बोली मेरे सभी भाइयों की सौगंध। भाइयों ने सुन लिया और अपनी मां को बोले बहुत दिन हो गए बहन को ससुराल भेज देना चाहिए। तब उसको सब ने बहुत सारा धन देकर ससुराल भेजने लगे। तब उसकी ताई चाची बोली कि भाईयों ने तेरा लाड प्यार तो बहुत किया है। तेरे को 6 कमरों की ताली तो दे दी, लेकिन सातवें कमरे की ताली नहीं दी। तब उसने अपने धर्म के भाई को कहा कि मुझे सातवें कमरे की ताली क्यों नहीं दी। तो वह बोला कि सातवें कमरे की ताली मत लेना नहीं तो पछताएगी। पर वह जिद में आकर बोली मुझे तालि देनी ही पड़ेगी। तब उसको ताली दे दी। कमरा खोल कर देखा वहां पर एक बुड्ढा अजगर बैठा था। अजगर ने उसको देखते ही जोर से फुफकार मारी। तब उसने कहा कि “बाबोजी राम राम” अजगर ने कहा कि तुमने राम-राम कह दिया नहीं तो मैं तुझे डस लेता। वह बोली आप तो मेरे धर्म के पिता हो। मेरे को कैसे डस सकते हो ? फिर बोली कि “जीओ नाग नागोलिया, जिओ बासुकी नाग। जिन मेरो लाड लडाया, नौ करोड़ का हार ।।” तब अजगर ने अपना हार निकाल कर उसको दे दिया।
फिर वह बहुत सारा धन दौलत लेकर वापस अपने ससुराल आ गई। उसकी सारी जेठानियाँ कहने लगी “अपने पीहर में तो भाई, बाप होते हुए भी अपने को कोई ऐसा धन नहीं मिला। इसके पीहर नहीं है, तो भी इसको इतना धन मिला है। दूसरे दिन उसके बच्चे खेलते खेलते बोरियों में से अनाज को बिखेर रहे थे। तो उनकी ताईयों ने बच्चों को बोल मारा कि तेरे नाना-मामा तो सांप सपोले हैं, वे यह बात सुन रहे होंगे, देख रहे होंगे। वे तुम्हें चांदी की अनाज की बोरियां मंगवा देंगे। आप हमारा अनाज मत ख़राब करो। इस बात को बच्चों ने अपनी मां को जाकर बोला तब सांप जो उसका धर्म भाई था, ने बच्चों की बात सुन ली। दूसरे दिन बच्चे उनकी झाड़ू को बिखेर रहे थे। तो फिर एक ताई ने उनको बोल मारे कि आपको तो सांप सोना चांदी की झाड़ू करवा देंगे। तो बाकी ताईयों ने बोलै कि इनको बोल मत मारो, जैसे ही बोल मारते हैं, तो इनके घर वो सामान आ जाता है। अपन राजा को जाकर शिकायत करते हैं। तब सारी ताईयों ने राजा के पास जाकर शिकायत कि हमारी देवरानी के 9 करोड़ का हार है। वह उसके जैसी औरतों के लिए नहीं है। वह तो रानी के लिए है। तब राजा ने साहूकार के बेटे की बहू को बुलवाया और बोला कि वह हार मेरी रानी को दे दो। उसने हार निकालकर रानी को दे दिया और अपने मन ही मन बोली “मेरे गले में रहे तो हार, रानी के गले में नाग हो जाइए। तब वह हार देकर जाने लगी उधर रानी गले में हार पहनते ही हार का सांप बन गया। रानी को काट खाया तब रानी चिल्लाई। बेटे की बहू को बुलाओ ताकि मेरे हर निकालें। जादू टोना करके चली गई। राजा ने उसको बुलाया बोला तुमने मेरी रानी के जादू टोना कर दिया है। तुम ये हार जल्दी से वापस निकालो। उसने कहा कि मैंने तो कुछ नहीं किया। मेरे पीहर नहीं था। सो मैंने सांप देवता को मेरा भाई बनाया। उन्होंने मुझे हार दिया था। तब राजा ने कहा यह वापस ले लो। राजा ने एक अपने पास से और दिया। फिर जेठानियाँ ने बोला राजा रानी से भी यह नहीं डरती। फिर उन्होंने उसके पति को लगा दिया कि तुम्हारी बीवी तो जहां जाती है, वहीं से धन लेकर आती है। तुम इसको पूछो कि कहीं यह गलत काम तो नहीं करती है। तब उसके पति ने अपनी पत्नी से जाकर पूछा कि क्या करती हो? तुम कहां से इतना पैसा और धन लेकर आती हो? तब उसने कहा हम सातों देवरानी जेठानियाँ खेत से कच्ची मिट्टी लाने के लिए गई थी। वहां पर सांप देवता निकले तो सारी बोली कि इसको मार देते हैं। मैंने उसको मारने के लिए मना किया क्योंकि मेरे पीहर नहीं था। इसलिए मैंने कहा कि इस को भाई बना लेते है। उस सांप देवता ने ही मेरे को सारा धन दिया।
उसके पश्चात उसके पति ने पूरे गांव में यह घोषणा करवा दी कि नाग पंचमी और गोगा नवमी को कोई ठंडी रोटी मत खाना। इस दिन हमारे यहां विशाल भोज की व्यवस्था रहेगी। इस प्रकार से नाग पंचमी और गोगा नवमी के दिन उसके पति ने पूरे गांव को भोजन कराया। नागों की पूजा की इस। प्रकार यह कहानी नाग पंचमी और गोगा नवमी के दिन व्रत रखने के साथ सुनी जाती है। कहानी सुनने के पश्चात सीधा निकालते हैं। नाग देवता की पूजा करते हैं। हे नाग देवता जैसा उस साहूकार की बहू को पीहर दिखाया वैसा सबको दिखाना। कहते को सुनते को हुंकारा भरते को अपने सारे परिवार को दिखाना। इसके पश्चात बिंदायक जी की कहानी सुनते है।
बिंदायकजी की कहानी
एक समय एक ब्राह्मण था। जो सुबह सुबह उठकर गंगा स्नान करके वापस आकर बिंदायक जी की पूजा करते था। यह उसकी औरत को अच्छा नहीं लगता था। जिससे वह रोज गुस्सा होती और कहती कि आप सबसे पहले पूजा करने बैठ जाते हो, मैं घर में झाड़ू बुहार कैसे करूं ? ब्राह्मण उसकी एक नहीं सुनता था। एक दिन ब्राह्मण गंगा स्नान करने गए थे। पीछे से उसकी पत्नी ने बिंदायक जी की मूर्ति को छुपा दिया। वापस आकर ब्राह्मण ने पूछा की मूर्ति कहां गई? तब उसकी पत्नी बोली मुझे नहीं पता। ब्राह्मण ने खाना नहीं खाया और कहा कि मैं पूजा करके ही रोटी खाऊंगा। उसकी पत्नी ने उसको बहुत मनाया कि खाना खा लो। वह नहीं माना और रोने लग गया। उन दोनों को रोते झगड़ते देखकर बिंदायकजी की मूर्ति हंसने लगी। ब्राह्मणी को गुस्सा आया। बोली कि यह रही मूर्ति। उसके पश्चात ब्राह्मण ने पूजा की। तब मूर्ति बोली कि मेरी सेवा करते हुए बहुत दिन हो गए कुछ मांगों। ब्राह्मण बोला की “अन्न मांगू धन मांगूं, जितना दुनिया में सुख है, वह सब मांगू। तब बिंदायकजी जी ने ब्राह्मण को सारे सुख का आशीर्वाद दिया। ब्राह्मण अब मूर्ति को मंदिर में रख कर पूजा करने लगा। उसकी पत्नी इतना धन मिलने से खुश हुई और उसे भी विश्वास व श्रद्धा हो गई और उसने ब्राह्मण से बोलकर मूर्ति अपने घर में विराजमान करवाई। खूब प्रेम से पूजा करने लगी। हे बिंदायकजी महाराज जैसा उस ब्राह्मण को आशीर्वाद दिया, वैसा सबको देना। कहते को सुनते को हुंकारा भरते को सारे परिवार को देना।
आपने बहोत ही सरलता से नाग पंचमी के बारे में समझाया है। जिस तरह से आपने सभी बिंदुओं को स्पष्ट रूप से समझाने का प्रयास किया है। आपकी इस जानकारी से मैं सहमत हूं।
ReplyDeleteGood Job