Posts

Showing posts from June, 2019

अलाउद्दीन खिलजी की इतिहास प्रसिद्ध चितौड़गढ़ विजय । Historically famous Chittorgarh victory of Alauddin Khilji.

Image
अलाउद्दीन खिलजी की विजय (1297-1311 ईस्वीं) अलाउद्दीन खिलजी उत्तरी भारत की विजय (1297-1305 ईस्वीं)-- अलाउद्दीन खिलजी की इतिहास प्रसिद्ध चितौड़गढ़ विजय व प्रारंभिक सैनिक सफलताओं से उसका दिमाग फिर गया था। महत्वाकांक्षी तो वह पहले ही था। इन विजयों के उपरांत वह अपने समय का सिकंदर महान बनने का प्रयास करने लगा। उसके मस्तिष्क में एक नवीन धर्म चलाने तक का विचार उत्पन्न हुआ था, परन्तु दिल्ली के कोतवाल काजी अल्ला उल मुल्क ने अपनी नेक सलाह से उसका यह विचार तो समाप्त कर दिया। उसने उसको एक महान विजेता होने की सलाह अवश्य दी। इसके अनंतर अलाउद्दीन ने इस उद्देश्य पूर्ति के लिए सर्वप्रथम उत्तरी भारत के स्वतंत्र प्रदेशों को विजित करने का प्रयास किया। 1299 ईस्वी में सुल्तान की आज्ञा से उलुगखां तथा वजीर नसरत खां ने गुजरात पर आक्रमण किया। वहां का बघेल राजा कर्ण देव परास्त हुआ। वह देवगिरी की ओर भागा और उसकी रूपवती रानी कमला देवी सुल्तान के हाथ लगी। इस विजय के उपरांत मुसलमानों ने खंभात जैसे धनिक बंदरगाह को लूटा। इस लूट में प्राप्त धन में सबसे अमूल्य धन मलिक कापुर था, जो कि आगे चलकर सुल्तान का

Qutb al-Din Aibak - The rise of the slave dynasty in India. कुतुबुद्दीन ऐबक-भारत में गुलाम वंश का अभ्युदय।

Image
भारत में गुलाम वंश का अभ्युदय।  भारत में गुलाम वंश का अभ्युदय मुहम्मद गोरी के कोई पुत्र नहीं था। अतः उसका महान साम्राज्य उसके गुलामों द्वारा परस्पर में विभक्त कर लिया गया। वह अपने साम्राज्य को अपने गुलामों को ही देने के पक्ष में था। एक बार उसके जीवन कल में उसका ध्यान इस और आकर्षित किया गया था कि उसके पुत्र तो है नहीं। अतः उसकी मृत्यु के पश्चात उसके साम्राज्य का स्वामी कौन होगा ? इस पर मुहम्मद गोरी ने सहर्ष उत्तर दिया था कि दूसरे मुसलमानो के एक पुत्र होता है या दो होते है, मेरे तो हजारों तुर्की गुलाम पुत्र के समान है। जो मेरे बाद मेरे साम्राज्य के उत्तराधिकारी होंगे तथा समस्त विजित प्रदेशों के खुतबों में मेरे नाम को बनाये रखने का प्रयास करेंगे। मुहम्मद गोरी के इस कथन से स्पस्ट होता है कि वह अपने साम्राज्य को अपने तुर्की गुलामों के हाथों में देने से सहमत था। जब 1206 ईस्वीं में मुहम्मद गोरी इस दुनिया से सदैव के लिए चल बसा तो वास्तव में ऐसा ही हुआ। उसका साम्राज्य उसके शक्तिशाली गुलामों द्वारा हथिया लिया गया। दिल्ली प्रदेश का स्वामी कुतुबुदीन ऐबक बना। शनैः शनैः वह उत्तर भारत 

Due to the defeat of Rajputs in Medieval India. मध्यकालीन भारत में राजपूतों की पराजय के कारण।

Image
मध्यकालीन भारत में राजपूतों की पराजय के कारण महाराण प्रताप  पृथ्वीराज चौहान भारत का अंतिम हिंदू सम्राट माना जाता है। अतः उसकी पराजय का परिणाम यह हुआ कि भारत में सदैव के लिए हिंदू साम्राज्य नष्ट हो गया। उसके पतन के उपरांत जयचंद का विनाश और उसके अनन्तर अन्य राजपूत नरेशों का भी विनाश हुआ। कहने का तात्पर्य यह है कि राजपूत जो भारत में युद्ध करने में सर्वाधिक वीर तथा रणबांकुरे होते थे, वे एक के बाद एक तुर्कों से परास्त होते ही चले गए। आपके मस्तिष्क में यह विचार आना स्वाभाविक ही है कि इस पराजय के कारण क्या थे। राजपूतों की पराजय के कारणों पर भी हमें विभिन्न इतिहासकारों के विभिन्न विचार मिलते हैं। पाश्चात्य इतिहासकारों ने तो यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि राजपूत नरेश मध्य एशिया के तुर्कों से युद्ध कौशल में हीन थे। इसी प्रकार का सिद्धांत तत्कालीन मुस्लिम इतिहासकारों ने प्रतिपादित किया है और उन मुस्लिम इतिहासकारों का ही सहारा पाश्चात्य इतिहासकारों ने लिया है। परंतु आधुनिक इतिहासकारों के अन्वेषण से अब यह सिद्धांत अधिक तथ्य पूर्ण एंव तर्कपूर्ण नहीं