Posts

Showing posts from September, 2019

अलाउद्दीन खिलजी की इतिहास प्रसिद्ध चितौड़गढ़ विजय । Historically famous Chittorgarh victory of Alauddin Khilji.

Image
अलाउद्दीन खिलजी की विजय (1297-1311 ईस्वीं) अलाउद्दीन खिलजी उत्तरी भारत की विजय (1297-1305 ईस्वीं)-- अलाउद्दीन खिलजी की इतिहास प्रसिद्ध चितौड़गढ़ विजय व प्रारंभिक सैनिक सफलताओं से उसका दिमाग फिर गया था। महत्वाकांक्षी तो वह पहले ही था। इन विजयों के उपरांत वह अपने समय का सिकंदर महान बनने का प्रयास करने लगा। उसके मस्तिष्क में एक नवीन धर्म चलाने तक का विचार उत्पन्न हुआ था, परन्तु दिल्ली के कोतवाल काजी अल्ला उल मुल्क ने अपनी नेक सलाह से उसका यह विचार तो समाप्त कर दिया। उसने उसको एक महान विजेता होने की सलाह अवश्य दी। इसके अनंतर अलाउद्दीन ने इस उद्देश्य पूर्ति के लिए सर्वप्रथम उत्तरी भारत के स्वतंत्र प्रदेशों को विजित करने का प्रयास किया। 1299 ईस्वी में सुल्तान की आज्ञा से उलुगखां तथा वजीर नसरत खां ने गुजरात पर आक्रमण किया। वहां का बघेल राजा कर्ण देव परास्त हुआ। वह देवगिरी की ओर भागा और उसकी रूपवती रानी कमला देवी सुल्तान के हाथ लगी। इस विजय के उपरांत मुसलमानों ने खंभात जैसे धनिक बंदरगाह को लूटा। इस लूट में प्राप्त धन में सबसे अमूल्य धन मलिक कापुर था, जो कि आगे चलकर सुल्तान का

अलबरी कबीले का सरदार गयासुद्दीन बलबन । Alabari clan chieftain Ghiyasuddin Balban. Part-1

Image
बलबन Ghiyas-ud-din  Balban इल्तुतमिश की मृत्यु के 30 वर्ष बाद तक दिल्ली के शासन में अराजकता का ही साम्राज्य रहा। यद्यपि इल्तुतमिश की सुयोग्य पुत्री सुल्ताना रजिया ने साम्राज्य में व्याप्त अराजकता को समाप्त कर सुव्यवस्थित राज्य स्थापित करने का प्रयास किया था, परंतु वह सुल्ताना होने के कारण सन 1240 ईस्वी में मौत के घाट उतार दी गई। सन 1240 ईस्वी से 1206 ईस्वी तक का काल अशांति का काल था। सुल्ताना रजिया के अयोग्य तथा विलासी भ्राताओं द्वारा शासन न संभाला जा सका। सन 1246 ईस्वी इल्तुतमिश का तीसरा पुत्र नासीरुद्दीन गद्दी पर बैठा। जैसा कि हम पिछली पोस्ट में स्पष्ट कर चुके हैं कि नासीरुद्दीन एक दरवेश बादशाहा था। वह उदारता था,तथा दीनों का सहायक था। बलबन के शु- प्रशासन ने उसे राज्य कार्यों से और भी उदासीन बना दिया। इस कारण ही उसके शासन के 20 वर्ष ( 1246-66) शांति से व्यतीत हो गए। साम्राज्य की शासन सत्ता वास्तव में बलबन के ही हाथों में थी।  जैसा कि किसी इतिहासकार ने कहा है, “ नाम का शासक इल्तुतमिश का तीसरा पुत्र नासीरुद्दीन था, लेकिन सत्ता की डोर बलबन के मजबूत हाथों में थी। प्रारंभिक ज

करवा चौथ की कहानी-कार्तिक बदी चौथ । karva chauth ki kahani

Image
करवा चौथ करवा चौथ की कहानी कार्तिक बदी चौथ को करवा चौथ का व्रत करते हैं। इस दिन कहानी सुनने के लिए एक लकड़ी की पटरी पर जल का कलश, सीधा निकालने के लिए मिट्टी के करवे, गेहूं और थोड़ी शक्कर या चीनी  और दक्षिणा के लिए रुपए रोली, चावल, गुड और एक गिलास में गेहूं रखते हैं। इसके पश्चात कलश व करवों के स्वास्तिक का चिन्ह लगाकर 13-13 टिकिया सिन्दूर की लगाते हैं। सीधा निकालकर सासु के पैर लगते हैं। गिलास का गेहूं और रुपए किसी ब्राह्मण को दान में देते हैं। रात में चांद के उदय होने पर उसी जल, जो कलश लिया था और तेरह दाने गेहूं से अर्घ्य देते हैं तथा रोली, चावल व गुड़ चढ़ाते हैं। उसके पश्चात भोजन करते हैं। अपनी बहन बेटियों को सीधा निकाल के करवे और दक्षिणा भेजते हैं। चौथ का उजमन चौथ पूजन करे तब तेरह सुहागन ब्राह्मणियों को जिमाते हैं। कहानी सुने तब तेरह जगह 4-4 पूरी, थोड़ा-थोड़ा सीरा, तिल और रुपया रखते हैं। सीधा निकालकर सास के पैर लगकर देते हैं। रात को ब्राह्मणियों को जब भोजन कराते हैं तब जो तेरह जगह सीरा, पूरी रखे थे वो उनको ही देते हैं। भोजन के बाद तिलक निकाल कर उनको दक्षिणा के रूप में र

Razia Sultan 1236-1240 AD. रजिया सुल्तान 1236-1240 ईस्वीं ।

Image
रजिया सुल्तान 1236-1240 ईस्वीं रजिया सुल्तान गद्दी पर बैठना जैसा कि हम ऊपर स्पष्ट कर चुके हैं कि इल्तुतमिश के सब लड़के अयोग्य थे। अतः उसने अपने जीवन काल में ही अपनी पुत्री रजिया को अपना उत्तराधिकारी घोषित करते हुए कहा था “ मेरे पुत्र जवानी की अय्याशी में गर्क हैं-- और उनमें से कोई भी सुल्तान बनने के लायक नहीं है। रजिया ही देश का शासन चलाने के योग्य है और कोई नहीं है। “ अब्दुल्लाह तवारिखे मुबारक शाही में लिखता है कि इल्तुतमिश ने ग्वालियर के आक्रमण से लौटकर रजिया को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। परंतु उसके प्रधानमंत्री मुहम्मद जुनैद ने रजिया का विरोध किया और इल्तुतमिश की मृत्यु पर उसके पुत्र रुकनुद्दीन को ही सुल्तान बनाया। उसकी क्रूरता व विलासिता के कारण सरदारों ने उसका वध कर दिया और उसके स्थान पर रजिया को राज्य गद्दी पर बैठाया। कठिनाइयों का सामना करना तथा उसका पतन यद्यपि रजिया सुल्तान ने शासन प्रबंध ठीक तरह से चलाया था-- परंतु वह अपने कट्टर मुसलमान अमीरों को संतुष्ट नहीं कर सकी। वह दरबार में खुले रूप में आती तथा स्वयं न्याय करती थी। पर्दा उठा कर उसने ताक में रख दिय