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आजकल महिलाओं में माहवारी (मासिक धर्म) के मुद्दे को लेकर बहस छिड़ी हुयी है। बहस इस बात को लेकर है, की इस अवधि के दौरान उन्हें काम से छुट्टी देनी चाहिए या नहीं। मासिक धर्म एक चक्र है। इस चक्र से हर महिला हर महीने गुजरती है। आईये इसके बारे में कुछ जानकारी प्राप्त करते है।
मासिक धर्म क्या है?
हर महिला में जब उसका गर्भ अपने अंदर रक्त की एक नयी झिल्ली (परत) बनाता है तो पुरानी झिल्ली या परत छोटे छोटे टुकड़ो में टूटकर स्रावित होकर योनि मार्ग के द्वारा अपशिष्ट के रूप में बाहर निकलती है। ये प्रक्रिया हर महीने होती है। इसे मासिक धर्म, माहवारी या इंग्लिश में
Menstruation cycle कहते है। ये महिला में गर्भ को अंडे व भ्रूण परिपक्व होने के लिए हर महीने तैयार करता है। इसके चार चरण होते है।
1 . गर्भ में अंडे का निषेचित होना।
2 . निषेचित अंडे का अंडाशय में यात्रा करना।
3 . जब किसी महिला का पुरुष के साथ संसर्ग होता है, तथा पुरुष के द्वारा संसर्ग के दौरान शुक्राणु वीर्य के रूप में महिला की योनि में छोड़ दिये जाते है, तो वे परिवहन कर रहे अंडो के संपर्क में आते है। फलस्वरूप महिला गर्भ धारण कर लेती है। अगले महीने की माहवारी रूक जाती है। अब महिला के गर्भाशय में अंडे को पलवित करने के लिए जो झिल्ली पहले टूटती थी वो अपनी भूमिका निभाने लगाती है। अगर किन्ही कारणों से शुक्राणु व अंडे का मिलन नहीं होता है, तब वही झिल्ली पुनः वही प्रक्रिया दोहराती है।फलस्वरूप महिला अगले महीने फिर माहवारी चक्र से गुजरेगी।
4 . इस दौरान 20 से 60 मिली अपशिष्ट रक्त महिला के शरीर से बहार आता है। साधारण रूप से किसी में इसकी मात्रा कम व किसी में इसकी मात्रा ज्यादा हो सकती है। मोटे तौर पर 4 -12 T चम्मच।
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इस दौरान महिला के शरीर में कुछ हार्मोन स्रावित होते हैं। जो अपशिष्ट के रूप में योनि मार्ग के द्वारा अशुद्ध रक्त के साथ मिलकर शरीर से बहार निकलते है।
हर महिला इस चक्र के शुरू होने से पहले अपने आप को मानसिक रूप से तैयार करती है। मानसिक व शारीरिक कष्ट हर महिला में अलग अलग होता है। ये शारीरिक संरचना व लैंगिक गुणों पर निर्भर करता है। कोई महिला साधारण तरीके से व कोई महिला भयंकर शारीरक व मानसिक कष्ट से गुजर कर इस चक्र को पूरा करती है। साधारण व सहज रूप से पूर्ण करने वाली महिलाये आम तौर पर शारीरिक रूप से स्वस्थ होती है। लेकिन कुछ महिलाये स्वस्थ होने के बावजूद भी अत्यधिक वेदना से गुजरती है। उनमें इस अवधि के दौरान मानसिक रूप से शारीरिक रूप से आमूल चूल परिवर्तन देखे गए है। चिड़चिड़ापन, भूख न लगना, किसी काम में मन नहीं लगना, चक्कर आना, उल्टी आना, भयंकर पेट दर्द, सर दर्द, जी मिचलाना, बार बार मोशन की शिकायत आदि शारीरिक लक्षण देखने को मिलते है। ये स्थिति 2 से 10 दिन अलग अलग महिलाओं में अलग अलग रूप से देखि गयी है। कोई महिला इस स्थिति से दो दिन में बाहर निकल आती है, तो किसी किसी महिला को दस दिन का लम्बा पीड़ादायक समय गुजारना पड़ता है।
मासिक धर्म में होने वाली पीड़ा को कम करने के तरीके
इस दौरान होने वाली शारीरिक व मानसिक पीड़ा को निम्न उपाय अपनाकर बहुत हद तक काम किया जा सकता है।
1 . हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन :-
महिलाओं को मासिक धर्म शुरू होने के 4 -5 दिन पहले से ही दोनों समय के खाने में हरी पत्तेदार सब्जियों का भरपूर उपयोग करना चाहिए। इनमे
लौह तत्व व vitamin B प्रचुर मात्रा में होने के कारण खाने को पचने में मदद करती है। अगर खाना अच्छे से पचेगा तो बाकि शारीरिक क्रियाओं में आसानी हो जाती है
2 . सूखे मेवे या नट्स (NUTS) :-
बादाम, काजू, अखरोट, दाख आदि वसा से भरपूर होते है। इनमे
Omega-3 नामक पदार्थ बहुतायत से पाया जाता है जो शरीर की अंदरूनी क्रियाओं को सहज रूप में संपन्न करने में मददगार है।
3 . साबुत अनाज या फाइबर :-
भीगे चन्ने, अंकुरित अनाज, सुबह अल्पाहार में जरूर शामिल करे। चोकर युक्त आटे से बानी रोटियां आपको रुक रुक कर आने वाली माहवारी से छुटकारा दिलाएगा।
4. ताजे फल :-
अपनी पाचन तंत्र को शक्ति देने और अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने का एक और शानदार तरीका एंटीऑक्सिडेंट्स के साथ है। इसलिए माहवारी से पहले ही ताजे रसदार फलों का खूब सेवन करें। ये आपको माहवारी के समय होने वाले दर्द से राहत दिलाएगा।
5. पानी का सेवन :-
ये एक उपाय सबसे श्रेष्ठ है। पानी का ज्यादा सेवन अपशिष्ट एकत्रित होने में मदद करता है। जो अशुद्ध रक्त के रूप में थक्को (Clots) की शक्ल में योनि मार्ग से बहार निकलेगा। ये दर्द में बहुत आराम पहुंचाएगा। जितना ज्यादा व जितनी जल्दी अशुद्ध रक्त शरीर से बाहर आएगा उतना जल्दी ये चक्र पूरा हो जायेगा।
सावधानियां।
आप मासिक धर्म चक्र के शुरू होने के बाद अपने दैनिक स्वच्छता का विशेष ध्यान रखे।
गर्म स्नान करके, आप ऐंठन कम करने और अपने आप को फिर से जीवंत करने में मदद कर सकती हैं, ताकि आप फिर से ताजा महसूस कर सकें। आपके पेट के शीर्ष पर एक गर्म पानी का थैला भी मदद कर सकता है कुछ दवाइयां हैं जो अच्छी तरह से मदद कर सकती हैं, लेकिन इससे पहले एक स्त्री रोग विशेषज्ञ या डॉक्टर से सलाह लेना आवश्यक है।
अब मुद्दा ये है, कि इस अवधि के दौरान इन महिलाओं को कार्य स्थल से अवकाश देना चहिये या नहीं। इस पर सटीक टिप्पणी करना तो मुश्किल है। क्योंकि हर महीने कार्य स्थल से किसी महिलाकर्मी को कम से कम 2 दिन की छुट्टी तो देनी ही पड़ेगी। यहाँ तक तो ठीक है। लेकिन उन महिलाओ का क्या जिनमें यह चक्र 5 दिन, 7 दिन लम्बा हो जाता है। इसको नियोक्ता व महिलाओं के संगठन आपस में मिल जुलकर हल कर सकते है। नियोक्ता चाहे तो जिन संस्थानों (प्राइवेट) में अतिरिक्त समय व दिवस पर कार्य होता है, उनमें तो हल निकल सकता है। लेकिन सरकारी कार्यालयों में जहाँ 5 कार्य दिवस है तथा अतिरिक्त समय का कोई प्रावधान नहीं है वहां पर फिर विरोधाभाष होगा।अगर ये अवकाश सवैतनिक हैं तो नियोक्ता पर अतिरिक्त व्यय भार होगा जिसे कोई भी नियोक्ता अपने संसथान के लिए स्वीकार्य नहीं समझेगा।अगर अवैतनिक हैं तो महिला कर्मी अपने आर्थिक हित प्रभावित मानने लगती है। समान काम समान वेतन का उद्देश्य गौण हो जायेगा। महिलाओं को इसे अधिकार स्वरूप नहीं मांगकर समस्या के हल के रूप में सोचना पड़ेगा। हर संस्थान की रीढ़ वहां काम करने वाले कर्मचारी होते है। जिन संसथानो में महिला कर्मी पुरुष कर्मियों के बराबर है, वहां पर समस्या बड़ी विकट हो सकती है। महिला कर्मी की अनुपस्थिति में पुरुष कर्मी पर अतिरिक्त कार्य भार आएगा जिसे वह हर महीने कतई बर्दास्त नहीं करेगा।
*फोटो गूगल से लिए गए है।
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