अलाउद्दीन खिलजी की इतिहास प्रसिद्ध चितौड़गढ़ विजय । Historically famous Chittorgarh victory of Alauddin Khilji.

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अलाउद्दीन खिलजी की विजय (1297-1311 ईस्वीं) अलाउद्दीन खिलजी उत्तरी भारत की विजय (1297-1305 ईस्वीं)-- अलाउद्दीन खिलजी की इतिहास प्रसिद्ध चितौड़गढ़ विजय व प्रारंभिक सैनिक सफलताओं से उसका दिमाग फिर गया था। महत्वाकांक्षी तो वह पहले ही था। इन विजयों के उपरांत वह अपने समय का सिकंदर महान बनने का प्रयास करने लगा। उसके मस्तिष्क में एक नवीन धर्म चलाने तक का विचार उत्पन्न हुआ था, परन्तु दिल्ली के कोतवाल काजी अल्ला उल मुल्क ने अपनी नेक सलाह से उसका यह विचार तो समाप्त कर दिया। उसने उसको एक महान विजेता होने की सलाह अवश्य दी। इसके अनंतर अलाउद्दीन ने इस उद्देश्य पूर्ति के लिए सर्वप्रथम उत्तरी भारत के स्वतंत्र प्रदेशों को विजित करने का प्रयास किया। 1299 ईस्वी में सुल्तान की आज्ञा से उलुगखां तथा वजीर नसरत खां ने गुजरात पर आक्रमण किया। वहां का बघेल राजा कर्ण देव परास्त हुआ। वह देवगिरी की ओर भागा और उसकी रूपवती रानी कमला देवी सुल्तान के हाथ लगी। इस विजय के उपरांत मुसलमानों ने खंभात जैसे धनिक बंदरगाह को लूटा। इस लूट में प्राप्त धन में सबसे अमूल्य धन मलिक कापुर था, जो कि आगे चलकर सुल्तान का

The invasions, causes and effects of the Turks on India-Part 2

Turk Ruler
Muhhamad Gajnvi

Continues.... 

महमूद के आक्रमण के प्रभाव--महमूद गजनबी (998- 1030 ईस्वी)

महमूद के 17 आक्रमणों का भारत पर क्या प्रभाव पड़ा? इस पर भी इतिहासकार विभिन्न मत रखते हैं।  डॉक्टर ईश्वरी प्रसाद लिखते हैं, “ उसके आक्रमणों का ध्येय धन, राज्य नहीं; मूर्ति पूजा का विनाश, विजय नहीं था; और जब वह उसे प्राप्त हो गया तो उसने भारत की असंख्य जनता की कोई  परवाह नहीं की।  भारत भूमि पर साम्राज्य स्थापित करने की उसकी इच्छा नहीं थी।अतः उसके आक्रमणों का भारत पर स्थाई प्रभाव पड़ने का प्रश्न ही नहीं उठता।  परंतु आक्रमण के प्रभाव एक ही पक्ष पर दृष्टिगत नहीं होते।  हो सकता है इन आक्रमणों से भारत अधिक प्रभावित नहीं हुआ, पर गजनी का राज्य को प्रभावित हुआ।  इसलिए  स्वर्गीय जवाहर लाल नेहरू ने अपनी पुस्तकभारत की खोजमें लिखा है कि  महमूद के आक्रमण भारत के इतिहास में एक बड़ी घटना है।  मैं यहां इन  प्रभावों का वर्णन दो वर्गों में करूंगा।  प्रथम वे प्रभाव जो तुर्क साम्राज्य पर पड़े, दूसरे वे प्रभाव जो भारत पर दृष्टिगत हुए।

तुर्की साम्राज्य पर पड़ने वाले प्रभाव

  1. महमूद को भारत से अतुल धन मिला, जिसके परिणाम स्वरुप वह एक विशाल सेना रख सका तथा उस सेना के सहारे वह अपना साम्राज्य सुरक्षित रख सका तथा उसे विस्तृत भी कर सका।  इस धन के सहारे वह अपने सैनिकों में हिंदुओं के विरुद्ध लड़ने का नवीन उत्साह उत्पन्न कर सका। 
  2. गजनी को महमूद ने अलंकृत भी भारतीय आक्रमणों के उपरांत ही किया।  भारत विजय से मिला धन उसने गजनी में सुंदर इमारतों के निर्माण में लगाया तथा बंदी रूप में ले जाए गए भारतीय चतुर कारीगरों ने उन सुंदर इमारतों का निर्माण किया। 
  3. गजनी ने साहित्य का भी विकास किया।  भारत से प्राप्त धन से महमूद ने अपने दरबार में अच्छे साहित्यक मनुष्यों को आश्रय दिया। महमूद को भारत से अच्छे हाथी मिले, जिनकी सहायता से वह अपना साम्राज्य सुरक्षित रख सका तथा उसे विस्तृत कर सका। 
  4. पंजाब गजनी साम्राज्य में मिला लिया गया।  इससे महमूद का साम्राज्य विस्तृत तो हुआ ही, पर साथ में उसने मुस्लिम आक्रमणकारियों के लिए भारत में आश्रय लेने का स्थान पंजाब को बना दिया।  
  5. पंजाब में रहकर मुसलमान भारत पर आक्रमण करने की योजना बना सकते थे तथा भारत में परास्त होने पर भी यहां से भागकर वहां शरण ले सकते थे। 
  6. मुस्लिम आक्रमणकारियों के लिए भारत का द्वार खुल गया।  महमूद के आक्रमणों के उपरांत भारत पर निरंतर उन्नीसवीं सदी के प्रारंभ तक मुसलमानों के हमले होते ही रहे।

भारत पर पड़ने वाले प्रभाव--मुसलमानों का भारत से प्रथम संपर्क

  1. मुल्तान और पंजाब के प्रदेश मुसलमानों के दिन हो गए।  इससे देश की सुरक्षा संकट में पड़ गई।  डॉक्टर मजूमदार लिखते हैं--” भारतीय शासन तंत्र में अनेकों दरारें गई और अब प्रश्न केवल समय का रहा, कब वह राज्य धराशाई हो जाएगा। “ 
  2. आक्रमणों से अन्य मुस्लिम आक्रांताओं को भारत विजय सुगम हो गई।  महमूद के आक्रमण काल में उत्तरी भारत में अनेक मुसलमान विद्वान तथा धर्म प्रचारक आकर बस गए, जो कालांतर में गुप्तचर बन गए तथा भारत की खबर मुस्लिम आक्रांताओं को देते रहे। 
  3. भारतवासियों की धर्म में श्रद्धा कम हो गई।  वे भगवान में आस्था नहीं रखने लगे। वे नास्तिक वह निर्गुण पंथी होने लग गए।  इनके अलावा मूर्ति पूजा का भी ह्रास हुआ। 
  4. इन आक्रमणों से भारत की स्थापत्य कला तथा मूर्तिकला का पतन हुआ। महमूद ने वर्षों से निर्मित प्राचीन कला पूर्ण  देवालयों को धराशाई कर दिया तथा उन पर की गई कलापूर्ण कृतियों को भी नष्ट करा दिया।  
  5. मुसलमानों के भय से सुंदर  एवं कलापूर्ण देवालयों का निर्माण होना बंद हो गया।  इसके अलावा मुसलमानों द्वारा निरंतर मूर्तियों का भंजन करने से हिंदू  शिल्पियों ने देव मूर्तियों का घड़ना बंद कर दिया। 
  6. भारत की अतुल धनराशि के बाहर चले जाने से भी भारत की आर्थिक अवस्था दयनीय हो गई और देश की सुरक्षा संकटग्रस्त हो गई। 
  7. भारत पर इन आक्रमणों के उपरांत मुस्लिम सभ्यता अपना रंग दिखाने लगी।  
  8. भारी संख्या में हिंदू मुसलमान बनाए जाने लगे।  
  9. इन सब का परिणाम यह हुआ कि भारतीय सभ्यता संस्कृति को एक विदेशी सभ्यता का कटु आघात सहना पड़ा।

महमूद का मूल्यांकन--

महमूद का मूल्यांकन दो दृष्टियों से किया जाता है। भारतीय इतिहासकार हिंदुओं ने उसे धर्मांध बताया है। भारतीय हिंदू इतिहासकारों ने उसे एक लुटेरे की संज्ञा दी है, जबकि मुस्लिम इतिहासकारों ने उस की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। हमें इन दोनों दृष्टियों के मध्यम को मार्ग ग्रहण करके विश्लेषण करना चाहिए। ऐसा दृष्टिकोण अपनाने पर ही हम उसके गुण अवगुण की सही समीक्षा कर सकते हैं। उस में निम्नलिखित गुण थे।
  1. कुशल सेनानायक-- महमूद के जीवन के अन्य पहलुओं पर इतिहासकार विभिन्न मत रख सकते हैं, पर उसके कुशल सेनानायक होने में किसे भी संदेह नहीं है।  भारत पर उसने 17 आक्रमण किए।  इन सब आक्रमणों में वह स्वयं सेनापति रहा और समस्त युद्धों में उसने अपूर्व सफलता भी प्राप्त की।  उसकी सोमनाथ विजय पर डॉक्टर ईश्वरी प्रसाद लिखते हैं-” राजस्थान की रेतीली भूमि से होते हुए सोमनाथ के मंदिर पर आक्रमण करना उसके दृढ़ निश्चय, मानसिक शक्ति और कठिनाइयों के सामने अधिक साहस को सिद्ध करता है।अदम्य उत्साही होना एक सफल सेनानायक का गुण समझा जाता है।  उसके इस अपूर्व गुण के विषय में डॉक्टर एल श्रीवास्तव इस प्रकार अपना मत व्यक्त करते हैं-”  महमूद वीर सैनिक तथा महान सेनानायक था।  कहा जाता है उसमें असाधारण व्यक्तिगत पराक्रम था,किन्तु वह निर्भिक तथा साहसी था।अंग्रेज इतिहासकार लेनपूल ने भी उसके अदम्य उत्साह है तथा सफल सेनानायक के गुणों की प्रशंसा की है।  डॉक्टर एस एम जफर भी महमूद को सफल सेनानायक उच्च कोटि का सेनानी मानते हैं।
  2. उदार एवं सफल प्रशासक-- महमूद की गणना एशिया के महानतम मुस्लिम शासकों में की जाती है। यद्यपि उसका साम्राज्य खलीफा से भी अधिक विस्तृत था तथापि उसके उस विशाल राज्य में शांति सुव्यवस्था थी।  मध्यकालीन अन्य शासकों की भांति वह एक स्वेच्छाचारी शासक था।  मंत्री उसकी इच्छा पर निर्भर रहते थे।  उनकी नियुक्ति तथा उनके पद से हटाना उसकी इच्छा पर निर्भर रहता था।  राज्य की कार्यपालिका, व्यवस्थापिका तथा न्यायपालिका का वह प्रमुख था।  उसके अधिकारों पर केवल दो ही अंकुश थे-- परंपरागत मुस्लिम कानून और सैनिक विद्रोह की आशंका।  धार्मिक कट्टरता उसके प्रशासन में बाधा प्रस्तुत नहीं करती थी।  वह अपने कर्तव्य पालन की ओर सदेश जागरुक रहता था।  यह सही है कि भारत में वह क्रूर आक्रांता सिद्ध हुआ, स्वभाव से वह  उदार था।  अपनी जनता की रक्षा करना वह अपना परम धर्म समझता था।
  3. न्याय प्रिय-- महमूद एक न्याय प्रिय शासक था।  न्याय संपादन में वह किसी का पक्षपात नहीं करता था।  उसकी न्यायप्रियता के विषय में कई दंत कथाएं प्रचलित है। सल्जूक वजीर  निजाम उल मुल्क उसके विषय में लिखता है--” महमूद न्याय प्रिय शासक था, विद्या प्रेमी और उदार स्वभाव तथा शुद्ध धार्मिक विचारों का व्यक्ति था।न्याय में वह कट्टरता पसंद करता था।  बेईमान व्यापारी उसके दंड से नहीं बच सकते थे।  न्याय में वह किसी का भी पक्षपात नहीं करता था।  अपने दुराचारी भतीजे को मृत्युदंड देने  मैं वह तनिक नहीं हिचका।
  4. मानव चरित्र का पारखी-- डॉक्टर आशीर्वाद लाल का कहना है कि महमूद माननीय चरित्र का अच्छा पारखी था।  वह अपने अनुयाई तथा सैनिकों के गुण को भलीभांति समझता था।  मानव चरित्र का पारखी होना एक सफल नेता राजनीतिज्ञ का गुण माना जाता है। वह अपने इसी अपूर्व गुण के कारण इतनी विशाल एवं सुसंगठित सेना का गठन कर सका और साथ में सैनिकों में इस्लाम के प्रसार के लिए उनमें नवीन उत्साह उत्पन्न कर सका।
  5. साम्राज्यवादी-- यह सही है कि उसके भारत के आक्रमण इस तथ्य को प्रमाणित नहीं करते कि वह साम्राज्यवादी था; परंतु पंजाब को तुर्की साम्राज्य में सम्मिलित करना उनके इस उद्देश्य को स्पष्ट प्रतीक है।  इसके अतिरिक्त भारत से प्राप्त अतुल धर्म को उसने विशाल सेना के गठन में व्यय किया,ताकि सेना की सहायता से एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया जा सके।  भारत से हाथी भी वह मध्य एशिया में अपने साम्राज्य विस्तार हेतु ही ले गया था।  उसने अपने पिता से विरासत में केवल गजनी और खुरासान की प्रदेश ही प्राप्त किए थे।  डॉक्टर आशीर्वाद लाल श्रीवास्तव का कहना है कि उसने स्वयं  अपने बाहुबल से इस विशाल साम्राज्य का निर्माण किया था। वह एक विशाल साम्राज्य का स्वामी था, जो इराक तथा कैस्पियन सागर से गंगा तक विस्तृत था और बगदाद के खलीफा से भी कहीं अधिक विशाल था।  उसके विशाल साम्राज्य के आधार पर वूल्जले हेग ने भी उसे महान सुलतान माना है।
  6. कलाप्रेमी तथा विद्वानों का संरक्षक-- यद्यपि महमूद समय पढ़ा लिखा नहीं था तथापि वह कला प्रेमी था।   गजनी को उसने, मस्जिदों, विद्यालय तथा समाधियों से अलंकृत किया। डॉक्टर एस आर शर्मा उसके कला प्रेम के विषय में इस प्रकार लिखते हैं--” जैसा कि साथ शताब्दियों बाद फ्रांस का लुई 14  ने किया, महमूद ने अपनी राजधानी तथा दरबार को सौरमंडल का रुप दिया जिसका अधिष्ठाता सूर्य वह स्वयं था।  गजनी को सुशोभित करने के लिए उसने शिल्पी, विद्वान, कवि तथा  कलाकार विस्तृत साम्राज्य के लिए विभिन्न भागों से आमंत्रित किए थे।इतिहासकार लेन पुल भी महमूद के कला प्रेम की सराहना करते हैं तथा उसे इस क्षेत्र में नेपोलियन से भी श्रेष्ठ मानते हैं।  उनका कहना है कि नेपोलियन ने तो पेरिस को  विजित देशों की कलाकृतियों से अलंकृत किया था, पर महमूद ने तो अन्य देशों से कलाकारों को गजनी आमंत्रित कर उनकी कलाओं में गजनी को सुंदर बनाया था।  इसी प्रकार उसे साहित्यकारों तथा विद्वानों से बड़ा अनुराग था। उसने अपने दरबार में योग्य एवं विख्यात विद्वान एकत्रित किए।  वह उन विद्वानों से साहित्य तथा धार्मिक विषयों पर वाद-विवाद करता था।  अलबरूनी, फिरदौसी, अंसारी तथा फर्रुखी  उसके दरबार की देदीप्यमान रत्न थे।  उसका सचिव प्रसिद्ध इतिहासकार उत्बी था। शिक्षा प्रसार की दृष्टि से उसने गजनी में विश्वविद्यालय स्थापित किया था।
  7. उच्च कोटि का धार्मिक-- महमूद भी धार्मिक कट्टरता तो इतनी विद्यमान थी कि हिंदुओं ने तो उसे धर्मांध तथा अपना कट्टर शत्रू बताया है।  वह कुरान में पूर्ण विश्वास रखता था।  मुसीबत युद्ध में भी वह नमाज पढ़ना नहीं बोलता था। युद्ध प्रारंभ करने से पूर्व भी वह अल्लाह की इबादत करना अच्छा समझता था।  उसकी धार्मिक आस्था  की प्रशंसा करते हुए एस एम जफर लिखता है कि वह युद्ध में भी अल्लाह की इबादत करने के लिए झुक जाता था।  तथा उससे अपनी विजय के लिए प्रार्थना करता था।
  8. आचरण की उच्चता-- निसंदेह उसने इस्लाम के प्रति अपार उत्साह था।  उसने इसके प्रसार के लिए देवालयों को धराशाई किया तथा भारी संख्या में हिंदुओं का कत्लेआम किया और उंहें मुसलमान बनाया।  परंतु कोई भी इतिहासकार उसके व्यक्तिगत आचरण पर कीचड़ उछालने का साहस नहीं कर सकता।  कहीं भी उसके द्वारा किसी भी स्त्री का शील भंग करने का दृष्टांत नहीं मिलता।
  9. सफल राजनीतिज्ञ  होना-- निसंदेह महमूद उच्च कोटि का सेनानायक योद्धा था। इसके अतिरिक्त वह सफल प्रशासक भी था।  परंतु उसमें एक सफल राजनीतिज्ञ के गुणों का सर्वथा अभाव था। लेनपुल लिखते हैं, “महमूद महान सैनिक था और उसमें अपार साहस तथा अधिक शारीरिक तथा मानसिक शक्ति थी, किंतु वह रचनात्मक तथा दूरदर्शी राजनीतिज्ञ नहीं था।  हमें ऐसे किन्ही नियमों संस्थाओं अथवा शासन प्रणालियों का पता नहीं जिसकी उसने नींव डाली हो।
  10.  सुंदरता का अभाव-- कहा जाता है कि महमूद तैमूर की भांति सौंदर्य से रहित था। उसके चेहरे पर चेचक के निशान थे, जिसके कारण उसका मुख सुंदर प्रतीत नहीं होता था। परन्तु वह अपने इस प्रभाव को राजा के से हावभाव द्वारा दूर करने का प्रयास करता था। परंतु महमूद अपने आभाव से भली भांति परिचित था और उसे यह अभाव अखरता था।  इसीलिए एक दिन उसने अपने मंत्रियों से कहा भी था कि राजा के व्यक्तित्व से उसके दर्शकों की आंखें चकाचौंध हो जानी चाहिए।  पर प्रकृति मेरे पर इतनी निष्ठुर रही है कि मेरा व्यक्तित्व देखने योग्य नहीं रखा है।

क्या महमूद लुटेरा था?-- 

महमूद के चरित्र के दो पक्ष थे।  हिंदुओं ने उसे निर्दयतापूर्वक मंदिर को लूटने वाला लुटेरा कहा है जबकि मुसलमान इतिहासकारों ने उसे एक सुदृढ़ प्रशासक माना है। स्वभाव से उसे धन से अपार मोह था।  अतः उसकी उपलब्धि के लिए वह है हर प्रकार के संभव प्रयास कर सकता था।  भारत पर उसके आक्रमण करने का एक प्रमुख कारण भारत का धन भी था।  वह यहां राज्य को स्थापित करना नहीं चाहता था और राज्य स्थापना की दृष्टि से सोमनाथ का मंदिर इतना महत्वपूर्ण नहीं था। सोमनाथ का अतुल धन ही आकर्षण मूल कारण था। इस धन की लिप्सा से वह इतना आतुर हो उठा कि राजस्थान के रेगिस्तान की भी चिंता नहीं करता हुआ वह वहां जा पहुंचा और उस मंदिर को उसने बुरी तरह से लूटा। कन्नौज, मथुरा कांगड़ा पर भी उसने आक्रमण अपने इस उद्देश्य पूर्ति हेतु ही किए थे।  मथुरा के देवालयों से उसे बड़ी मात्रा में धन मिला। कन्नौज कांगड़ा में भी उसने बहुत लुटा। यहां के राज परिवारों से तो उसने धन प्राप्त किया ही- पर वहां के नागरिक भी उस की लूट से बच सके।  जयपाल को बंदी के रुप में पाकर सर्वप्रथम उसकी दृष्टि उसके बहुमूल्य कंठहार पर पड़ी।  राजा के अलावा उसके बन्दी सामंत भी धन के लोभी महमूद से इसी प्रकार लूटे गए।  उसकी इस रुट की मनोवृत्ति को स्वीकार करते हुए डॉक्टर आशीर्वाद लाल श्रीवास्तव लिखते हैं--” उस युग के भारतीय महमूद को शैतान का अवतार मानते थे।  उनकी दृष्टि में वह एक साहसी डाकू, लालची लुटेरा, तथा कला का निर्दयी शासक था; क्योंकि उसने हमारे दर्जनों समृद्धिशाली नगरों को लूटा तथा अनेक मंदिरों को जो कला के आश्चर्यजनक आदर्श थे,  धूल में मिला दिया।

परंतु इतिहासकारों की यह मान्यता है कि उस के भारत आक्रमण उसके द्वारा देवालयों को लूटना आदि पर आधारित है।  इसके विपरीत दूसरे इतिहासकार उसे लूटेरा ने मानकर एक राजनीतिज्ञ एक दूरदर्शी मानते हैं।  उनका कहना है कि वह जानता था कि बिना धन के विशाल सेना का गठन नहीं हो सकेगा और बिना विशाल सेना के वह विशाल साम्राज्य स्थापित नहीं कर सकेगा।  इस कारण उसने इतना धन संग्रह किया।  यह धन उसने भारत के देवालयों से नहीं, वरुन मध्य एशिया से भी प्राप्त किया था।  इसके अलावा उसने धन के सहारे गजनी का गौरव भी बढ़ाया।  भारत से प्राप्त धन से उसने बलबन की भांति अपने दरबार का गौरव इतना बढ़ाया कि मध्य एशिया के अन्य सुल्तान भी उसे अपने से उच्च मानने लगे थे।  उस काल में सैनिकों में युद्ध के लिए उत्साह उत्पन्न करने का साधन भी धन ही था। यदि वह अपने सैनिकों को लूटने के लिए प्रोत्साहित नहीं करता तो संभव है कि इतने सैनिक उसके साथ भारत नहीं आते और मैं वह इतनी उत्साह से युद्ध ही करते। यहां से लूट का माल ले जाकर मुसलमान गजनी में अपने जीवन को सुखद रूप में व्यतीत करते थे। अतः यह तो सत्य है कि महमूद लोभी था तथा वह सदैव धन के पीछे पड़ा रहता था।  पर यह कहे कि उसने भारत का धन इसीलिए लूटा क्योंकि वह लुटेरा था तो सही नहीं जान पड़ता। इसके साथ ही हमें यह भी स्वीकार करना पड़ेगा कि उसकी इस लूट के पीछे उसके राजनीतिक विचार भी थे।

क्या महमूद धर्म का कट्टर था?-- 

महमूद का भारत आने का उद्देश्य एक आक्रमणकारी के रूप में तो था ही, पर वह यहां एक धर्म प्रचारक के रुप में भी आया था। उसने खलीफा को भारत में प्रति वर्ष आक्रमण करने का वचन दिया था। इससे स्पष्ट है कि वह भारत में इस्लाम का प्रसार करके अपने को इस्लाम का सच्चा सेवक सिद्ध करना चाहता था। भारत के आक्रमण उसके साम्राज्य विस्तार की नीति पर आधारित थे।  उसके आक्रमण युद्ध भूमी योद्धाओं तक ही सीमित नहीं रहते थे। जैसे ही हिंदू नरेश युद्ध में परास्त होता, महमूद उसके सैनिक वहां के देवालयों पर टूट पड़ते पर। देवालयों का सर्वस्व लूट लेते थे।  कई इतिहासकार देवालयों की लूट के पीछे उसका राजनीतिक उद्देश्य बता देते हैं। पर् देवालयों की मूर्तियों को तोड़ने में उसका क्या राजनीतिक उद्देश्य था? मूर्तियों को तोड़ कर वह उन्हें गजनी भिजवा दिया करता था।  सोमनाथ की मूर्ति तोड़ते समय उसने स्पष्ट कहा था, हां मैं मूर्ति भंजक हूं।उस मूर्ति के टुकड़ों को उसने मक्का बगदाद भिजवा दिया था ताकि वहां के मुसलमान उन मूर्तियों को अपने पैरों से रौंद सके।  इसके अलावा उसने  विजित प्रदेशों के सैनिकों को बंदी ही नहीं बनाया, वरन उनका निर्दयता से कत्लेआम इसलिए किया गया कि वह हिंदू थे।  साथ में वह इस विशाल कत्लेआम से अपने मुस्लमान सैनिकों मेंजिहादके प्रति आस्था उत्पन्न कर खलीफा सेगाजीका ख़िताब प्राप्त करना चाहता था।  यह सब इस बात के स्पष्ट प्रमाण है कि वह इस्लाम धर्म का कट्टर था और भारत में इस्लाम का प्रचार करना चाहता था। इसके अतिरिक्त उसके व्यक्तिगत जीवन से भी उसकी धार्मिक कट्टरता झलकती है। वह दिन में पांच बार नमाज पढ़ता तथा रमजान के दिनों में रोजा रखता था।  यहां तक की भयंकर युद्ध के बीच भी वह नमाज पढ़ने में नहीं घबराता था।

परंतु प्रफेसर हबीब का मत है कि महमूद धर्मांध था।  उस ने भारत पर आक्रमण इस्लाम प्रसार के लिए नहीं, वरन केवल यहां के धन को लूटने के उद्देश्य से किए थे। वह लिखते हैं कि चूँकि इस्लाम लूट आतताईपन का समर्थन नहीं करता। अतः महमूद ने भारत में बर्बरतापूर्ण कृत्य करके तो इस्लाम का अपकार ही किया था। किंतु महमूद एक पवित्र मुसलमान शासक था,जो अपने धर्म के नियमों का सावधानी से पालन करता था और इस संबंध में उसके समकालीन मुसलमानों को किसी प्रकार का संदेश नहीं था। बल्कि वे उसे एक आदर्श मुस्लिम शासक मानते थे। अपने इस कथन से प्रफेसर हबीब यह सिद्ध करना चाहते हैं कि महमूद धर्म पालन में कट्टर अवश्य था, पर  धर्मांध नहीं था।

इतिहासकार एलफिंस्टन-- भी इसी मत का समर्थन करते हुए लिखते हैं--” गुजरात में इतने दीर्घकाल प्रवास तथा गुजरात को अधीनस्थ करते समय महमूद ने एक का भी धर्म परिवर्तन किया हो यह हम नहीं सुनते।  हिंदुओं को धर्म परिवर्तन करने को बाध्य करना उसका कार्य था।

महमूद की मृत्यु तथा उसके उत्तराधिकारी-- 

1030 ईस्वी में महमूद की मृत्यु हो गई।  कहते हैं कि उसके अंतिम दिन सुखद सिद्ध हुए।  साम्राज्य अति विस्तृत हो गया था और उस पर पूर्ण रुप से शांति व्यवस्था बनाए रखने में वह सफल नहीं हुआ था।  अतः उसके जीवन काल में ही उसके साम्राज्य में अराजकता घर करने लग गई थी।  भारत के लुटे माल से उसे बहुत मोह हो गया था, अतः उसने इस लोक को अत्यंत दुख पूर्ण अवस्था में छोड़ा।  महमूद का वंश उसकी मृत्यु उपरांत 150 वर्ष तक गजनी में शासन करता रहा।  परंतु उस दीर्घकाल में उसके उत्तराधिकारियों ने कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं किए।  महमूद की मृत्यु पर उसका पुत्र मसूद गजनी का सुल्तान बना।  वह महत्वकांक्षी आवश्यक था पर शराब ने उसके जीवन को नष्ट कर दिया और इसीलिए 1049 ईस्वी मैं उसका वध कर दिया गया। उसकी मृत्यु के उपरांत अनेक निर्बल सुल्तान और बने।  उन की निर्बलता का लाभ उठाकर सेल्जुक तुर्कों ने गजनी पर आक्रमण किया। ये लोग महमूद के समय उसके अधिन। सेल्जुक तुर्कों के विद्रोह के उपरांत फारस भी गजनी साम्राज्य से स्वतंत्र हो गया।  इस प्रकार महमूद के निर्बल एवं अयोग्य उत्तराधिकारियों के समय में उसका विशाल गजनी साम्राज्य दिनों-दिन विघटित होने लगा।  इन्हीं परिस्थितियों में गजनी के सुलतान बहराम का गौर के शासक से झगड़ा हो गया।  बहराम ने गौर के राजकुमार का वध करवा दिया था।  इस झगड़े का अंत में यही परिणाम निकला कि 1173 इसवी में गजनी पर गौर के सुर अफगानों का आधिपत्य स्थापित हो गया और महमूद के वंश का सूर्य गजनी में सदा के लिए अस्त हो गया। 

End of the 

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